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सपना सा लगे
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गरजते बदरा की धुन सा लगे,
तो कभी बारिश की फुहार की छुवन सा लगे !
क्यूँ वो अनजान चेहरा मुझे अपना सा लगे,
पर जब पाने को हाथ बढाऊं तो सपना सा लगे !!
कभी सितार की मधुर सरगम सा लगे,
तो कभी तेज़ बारिश की छनछन सा लगे !
क्यूँ उसके अहसास से तनहा राहों पर दिया सा जले,
पर जब पाने को हाथ बढाऊं तो सपना सा लगे !!
जाने कबसे वो संगसंग मेरी धड़कन के चले,
जाने कबसे वो आकर इन ख्यालों में बसे !
है इंतज़ार उस लम्हे का जब वो इन ख्वाबों से निकले,
और जब पाने को हाथ बढाऊं तो इक सच सा लगे !!
~~ अंकिता जैन "भंडारी" ~~
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1 Comments
nice
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